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भटकती आत्मा भाग - 11

हेलो डियर माइकल"।
मनकू सहसा पहचान भी ना सका, फिर ध्यान पूर्वक देखता हुआ उसके मुख पर प्रसन्नता थिरकने लगी-    "तुम और इस पोशाक में" ?
     " हां माइकल कैसी लग रही हूं मैं इस ड्रेस में ? कभी-कभी प्रियतम को खुश करने के लिए और उसकी निकटता पाने के लिए उसकी सभ्यता और संस्कृति को भी अपनाना पड़ता है"।
  मनकू _  "यह तो ठीक है परंतु अपने दूधिया गोरेपन को कालिख से क्यों ढक लिया है"?
    " मैं चाहती थी कि तुम मुझे शीघ्र पहचान ना सको,और तुम्हारी व्यग्रता से मैं आनंद प्राप्त करना चाहती थी; परंतु यह हो न सका"।
   मनकू -  "तो मेरी व्यग्रता से तुम्हें आनंद मिलने लगा है"? 
  "तुमने ही तो मुझे सिखाया है | अगर ऐसी बात ना होती तो तुम इतने दिन मुझसे मिलने न आते ? मैंने भी तो कितनी व्यग्रता में ये दिन गुजारे हैं"।
    मनकू  -   "तुम ठीक ही कहती हो मैग्नोलिया, परंतु मेरी मजबूरी पर भी तो ध्यान दो"।
  " प्रेम में किसी तरह की मजबूरी नहीं होती"।
  " छोड़ो इन बातों को, पहले यह बताओ कि तुम्हें यह क्या ठिठोली सूझी ? मैंने तो तुम्हारी अनुपस्थिति में अपना प्रोग्राम नहीं देने का निश्चय कर दिया था"।
   "अच्छा अभी इन बातों को छोड़ो देखो तुम्हारा नाम पुकारा जा रहा है"।
   मनकू -   " मुझे तो प्रोग्राम देने का मन ही नहीं कर रहा है, मैं तो बस तुम से बातें करते रहना चाहता हूं l चलो कहीं एकांत में चलें"|
  " नहीं माइकल बातें करने का बहुत अवसर मिलेगा, परंतु प्रोग्राम हमेशा नहीं होता | जाओ प्रोग्राम में भाग लो, मैं भी अपने पापा के पास स्टेज पर जा रही हूं"|
  मनकू का मन बुझ गया था, किसी प्रकार रंगमंच पर पहुंचा | सरदार बहुत क्रोधित नजर आ रहा था | अपना परिचय  घबड़ाते हुए मनकू ने दिया और डंडा का खेल दिखाने के लिए मैदान में पहुँच गया। सब की दृष्टि उस पर चली गई। डंडा को वह इस तरह से घुमाने लगा  मानो उसका कोई अपना ही Wild हो।  लोग भाव विभोर होकर देख रहे थे। सहसा खेल समाप्त हुआ,अब प्रतियोगिता की बारी आई | अन्य गांव के कुछ लठैत आये और मनकू के साथ जूझ पड़े। डंडो के बीच से मनकू इस प्रकार निकल जाता जैसे हाथ से मछली। एक भी डंडे का आघात उस पर ना हो सका।
  अब दूसरे गांव के ग्रामीण लठैत बचने के लिए अपना दांवपेच दिखाने लगे,परंतु डंडे की चोट से भू लुंठित हो गये।
  इस प्रकार कई ग्रामीण लठैत आए परंतु सब पराजित होते गए। अंत में मंच से उद्घोष हुआ -    "इस कार्यक्रम में मनकू माझी को सर्वश्रेष्ठ लठैत घोषित किया जाता है"|
अब तीरंदाजी की प्रतियोगिता के लिए उम्मीदवारों के नाम पुकारे गए l सभी क्रीडा क्षेत्र में समुपस्थित हुए। एक दूर के वृक्ष पर लटकती हुई छोटी चिड़िया की आंख का निशाना लेना था। कोई भी उम्मीदवार सफल ना हो सका। अंत में मनकू माझी की बारी आई। उस ने बाण चलाया  ठीक निशाना को पार करता हुआ उसका बाण दूसरी तरफ गिरा। तालियों की गड़गड़ाहट से दिशाएं गूंज उठीं। इसमें भी मनकू को ही सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज का खिताब मिला। अब शब्द वेधी बाण चलाना था। इस कार्यक्रम में मात्र मनकू माझी ही भाग ले रहा था l उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई। एक भेड़ को दूर पर खूँटे से बांध दिया गया। किसी ने भेड़ को पत्थर से मारा तो भेड़ चीत्कार कर उठी। उस आवाज को सुनकर मनकू ने बाण चलाया,ठीक भेड़ को बिंधता चला गया बाण। लोगों ने प्रसन्नता से मनकू को गोद में उठा लिया और झूमने लगे। तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी | इस कार्यक्रम में भी मनकू ने बाजी मार लिया था |
अब घुड़दौड़ की प्रतियोगिता आरंभ होने वाली थी | पाँच लोग ही इसमें भाग ले रहे थे,मनकू भी इसमें शामिल था | प्रतियोगिता के लिए यह योजना बनाई गई थी कि पाँचो व्यक्ति एक निश्चित स्थान से अपने अश्वों को दौड़ाएंगे l एक मील के बाद जो पीपल का बड़ा सा वृक्ष है वहां रुक जाएंगे l इस बीच एक नाला था जो चौड़ा था,उसको भी अपनी कुशलता से पार करना था | मनकू को छोड़कर शेष चारों ने उसका अभ्यास किया था | घोड़ा आसानी से उछलकर नाले के उस पार चला जाता था | परंतु मनकू ने कभी इसका अभ्यास नहीं किया था,जोश में आकर ही इस प्रतियोगिता में उसने भी अपना नाम अंकित करवा लिया था | प्रतियोगिता प्रारंभ हुई,पांचों अश्वारोही तीव्र गति से अपने घोड़े को दौड़ाने लगे l  निश्चित मार्ग के मध्य में नाले के पास मनकू का अश्व सबसे पीछे रह गया, चारों  अश्वारोही सफलतापूर्वक नाले को पार करके घोड़े को आगे सरपट दौड़ाते ले चले, परंतु मनकू का अश्व रुक गया।  वह नाले को पार नहीं कर पा रहा था। अश्व की रश्मि को इस ढंग से मनकू ने खींचा कि अश्व उसको लिए दिए नाले में जा गिरा। मनकू भी नाले के गड्ढे में इस प्रकार लुप्त हो गया जैसे पत्थर का टुकड़ा पानी में लुप्त हो जाता है। दर्शक वर्ग जो पीछे-पीछे अपने-अपने घोड़ों से और कुछ पैदलभी आ रहे थे यह दृश्य देखकर विस्मित हो गये। उनकी आशा के प्रतिकूल यह दुर्घटना हुई थी। कुछ ग्रामीणों की सहायता से मनकू माझी को गड्ढे से बाहर निकाला गया।
  उसके शरीर के कई भागों से रक्त बह रहा था। हाथ और पैरों की हड्डियां टूट गई थीं। मनकू अपनी चेतना खो बैठा था। दर्शकों में मैगनोलिया भी थी, उसने कुछ युवकों की सहायता से उसे अपने अश्व पर डाला और अकेले ही अस्पताल की ओर चल पड़ी। इधर मनकू की दुर्घटना का समाचार सुनकर सबको दु:ख हुआ | यह प्रतियोगिता अनिर्णीत छोड़ दिया गया। अन्य प्रतियोगिता के पुरस्कारों का वितरण सरदारों ने किसी प्रकार कर दिया। और आगे की शेष कार्यवाही को भी छोड़ दिया गया।
  जानकी जो पहले बहुत खुश थी अब उसके चेहरे पर गहरा दु:ख प्रतिबिंबित हो रहा था | उसको चक्कर पर चक्कर आ रहा था | किसी तरह उसकी सहेलियों ने उसे घर ले जाकर लिटाया और उसके उपचार में जुट गईं। अन्य युवकों ने घोड़े को गड्ढे से बाहर निकाला तथा उसकी चिकित्सा में जुट गये। सबके चेहरों पर गहरी विषाद की रेखा अंकित हो चुकी थी।

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    कलेक्टर साहब ने अपनी जीप निकाला और उस पर मनकू को मैगनोलिया की सहायता से लिटा दिया। अंग्रेज पिता-पुत्री मनकू को प्राथमिक चिकित्सा के बाद मिशन के बड़े हॉस्पिटल ले जा रहे थे चिकित्सा के लिए।  अब तक मनकू के कुछ और दोस्त भी आ गए थे,सभी अपने-अपने घोड़े पर चढ़कर  बड़े हॉस्पिटल की ओर चल पड़े। अब किसी में प्रसन्नता की वह आभा नहीं रह गई थी। सब गहरे शोक के सागर में डूबे हुए थे। ऐसा नहीं लगता था कि कुछ देर पहले यह ग्रामीण प्रसन्नता की उर्मियों में अपने दिल को सराबोर किए रहे होंगे। मनकू का पिता बुखार से पीड़ित था,इसलिए वह जाने में असमर्थ था। घर में ही बेसुध पड़ा था वह। किसी ने खबर भी नहीं दी थी उसे। माँ को भी सब ने पिता के साथ ही रहने के लिए कहा था उनकी देखभाल के लिए। वह घर में ही बैठे बैठे बेटे के लिए प्रार्थना करती रो रही थी। छोटा भाई सबके साथ अस्पताल चला गया था।

    क्रमशः

  निर्मला  कर्ण

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1 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 02:33 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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